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मेरी रचनाएं


रविवार, 2 अक्तूबर 2011

!...!...मुकद्दर...!...!


आज बादलों के आगोश में चाँद को सोते देखा 
सहमी-सहमी रात में तारों को रोते देखा 


जिसे मैंने चाहा एक मुद्दत बीतने तक 
आज मैंने उसे किसी और का होते देखा 


जिसकी आरजू में मैंने एक उम्र गवां दी 
उसे समंदर की गहराइयों में खोते देखा 


जिस मोती को बनाकर रखा अपना मुकद्दर जानकार 
ये "अनीश" किसी और को उसे अपने हार में पिरोते देखा 


नीलकमल वैष्णव"अनीश"

6 टिप्पणियाँ:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर तथा सार्थक रचना , आभार

विभूति" ने कहा…

जिसकी आरजू में मैंने एक उम्र गवां दी
उसे समंदर की गहराइयों में खोते देखा.... bhaut pyari panktiya.....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

jab dhokha milta hai dil u hi cheekhta hai.

samvedansheel abhivyakti.

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

आप सबके स्नेह से हमेशा मुझे बहुत खुशी मिलती है धन्यववाद आप सभी के आगमन का

राजेंद्र अवस्थी. ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना,अद्भुत भावाभिव्यक्ति......शानदार....।

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