कोई रूठे यहाँ तो कौन मनाने आता है
रूठने वाला खुद ही मान जाता है,
ऐ अनिश दुनियां भूल जाये कोई गम नहीं
जब कोई अपना भूल जाये तो रोना आता है...
जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो
रौशनी में भी अँधेरे का अहसास हो,
तब किसी कि याद में मुस्कुरा दो
शायद वो भी आपके इंतजार में उदास हो...
फर्क होता है खुदा और पीर में
फर्क होता है किस्मत और तक़दीर में
अगर कुछ चाहो और ना मिले तो
समझ लेना कि कुछ और अच्छा है हाथो कि लकीर में.
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०, ०७५६६५४८८००
1 टिप्पणियाँ:
bahut hi sunder blog hai aapka ...sunder rachano ke sath.......badhai ho..
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धन्यवाद