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मेरी रचनाएं


गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

मेरी थी जो...

हो चुकी अब किसी और कि वो...
कभी मेरी ज़िंदगी थी वो...
भूलता है कौन अपनी पहली मुहब्बत को...?
मेरी तो सारी खुशी थी वो...
फूलों कि तरह मुस्कुराती थी वो...
मेरे होंठों कि हँसी थी वो...
मुद्दतों के बाद देखा है मैंने उसको...
आज भी उतनी हसीन दिखती है वो...
जिसके नाम मैंने अपनी ज़िंदगी कर दी...
लोग कहते हैं मेरे लिए अजनबी थी वो...

4 टिप्पणियाँ:

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " ने कहा…

बहुत सुन्दर ....

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,

Anupama Tripathi ने कहा…

अच्छा लिखा है ...!!

Dinesh pareek ने कहा…

भावपूर्ण रचना क्या कहने...
बहुत ही सुन्दर..
भावविभोर करती रचना...

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